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Horror story 8
The moon cast an eerie glow over the desolate cemetery, its light seeping through the gnarled branches of the old oak trees. The air was heavy with a sense of foreboding as I cautiously made my way through the rows of crumbling tombstones. My heart pounded in my chest, my breath quickened, but I pressed on, unable to resist the curiosity that had led me here.
Legend had it that this cemetery was haunted by wandering souls, lost spirits trapped between the realms of the living and the dead. It was said that on certain nights, when the moon was full and the veil between worlds was thin, these restless spirits would rise from their eternal slumber, seeking solace, seeking redemption.
As I walked deeper into the heart of the graveyard, whispers carried on the wind, barely audible but unmistakably there. The hairs on the back of my neck stood on end, and a chill crept up my spine. Shadows danced in the moonlight, their movements unnatural, as if guided by invisible hands.
I approached a weathered mausoleum, its stone facade covered in ivy, the iron gate rusted and creaking. With trembling hands, I pushed it open, the sound echoing through the stillness of the night. The air inside the mausoleum was thick with decay, the scent of age and death overwhelming.
I stepped cautiously into the darkness, my eyes adjusting to the dim light. The crypt was adorned with ornate carvings and statues, their faces contorted in eternal anguish. Suddenly, a flickering light caught my attention. I turned toward it, and my heart nearly stopped.
There, in the corner of the mausoleum, stood a figure. Its form was ethereal, a translucent apparition bathed in an otherworldly glow. The ghostly figure had a mournful expression, its eyes hollow and haunted. It reached out a transparent hand, as if beckoning me to approach.
Fear and curiosity battled within me, but my fascination overcame my terror. I cautiously stepped forward, drawn toward the specter like a moth to a flame. As I moved closer, the apparition's mouth opened, and a sound emerged—a low, mournful moan that seemed to echo from the depths of despair.
I couldn't tear my gaze away from the ghostly figure, its presence overpowering, its anguish palpable. It seemed to be trapped, yearning for release from its eternal torment. In that moment, I realized that these wandering souls were not malevolent beings but lost, longing for peace.
But as my hand reached out to touch the spirit, a sudden gust of wind blew through the mausoleum, extinguishing the candles that lined the walls. Darkness engulfed me, and the specter disappeared, leaving only the echoes of its mournful cry.
I stumbled backward, my heart pounding, my breath ragged. The cemetery was enveloped in an eerie silence once again. I knew then that I had witnessed something extraordinary, something beyond the realm of the living.
As I made my way out of the graveyard, I couldn't help but wonder about the souls that wandered there. Were they condemned to eternal suffering, or could they someday find the peace they so desperately sought? The questions haunted me, lingering like a ghostly presence, forever etched in my memory.
And so, I left the cemetery, carrying the weight of the wandering souls with me, their stories forever etched in my mind, a testament to the enduring power of the supernatural and the fragile nature of our existence.
चाँद ने उजाड़ कब्रिस्तान पर एक भयानक चमक बिखेरी, उसकी रोशनी पुराने ओक के पेड़ों की टेढ़ी-मेढ़ी शाखाओं से रिस रही थी। जब मैं सावधानी से ढहती हुई कब्रों की पंक्तियों के बीच से अपना रास्ता बना रहा था तो हवा में पूर्वाभास की भावना भारी थी। मेरा दिल मेरे सीने में जोरों से धड़क रहा था, मेरी सांसें तेज हो गई थीं, लेकिन मैं आगे बढ़ता रहा, उस जिज्ञासा का विरोध करने में असमर्थ रहा जिसने मुझे यहां तक पहुंचाया था।
किंवदंती है कि इस कब्रिस्तान में भटकती हुई आत्माएं रहती थीं, खोई हुई आत्माएं जीवित और मृत लोगों के बीच फंसी हुई थीं। ऐसा कहा जाता था कि कुछ रातों में, जब चंद्रमा पूरा होता था और दुनिया के बीच का पर्दा पतला होता था, ये बेचैन आत्माएं अपनी शाश्वत नींद से उठती थीं, शांति की तलाश में, मुक्ति की तलाश में।
जैसे-जैसे मैं कब्रिस्तान के बीचों-बीच चला गया, फुसफुसाहट हवा में चलने लगी, बमुश्किल सुनाई दे रही थी लेकिन वहां स्पष्ट रूप से सुनाई दे रही थी। मेरी गर्दन के पीछे बाल खड़े हो गए और मेरी रीढ़ की हड्डी में ठंडक दौड़ गई। परछाइयाँ चाँद की रोशनी में नृत्य कर रही थीं, उनकी हरकतें अजीब थीं, मानो अदृश्य हाथों द्वारा निर्देशित हों।
मैं एक पुराने मकबरे के पास पहुंचा, उसका पत्थर का आगे वाला भाग आइवी लता से ढका हुआ था, लोहे का गेट जंग खा रहा था और चरमरा रहा था। कांपते हाथों से मैंने उसे धक्का देकर खोला, आवाज रात के सन्नाटे में गूँज रही थी। मकबरे के अंदर की हवा सड़ांध से घनी थी, उम्र और मौत की गंध जबरदस्त थी।
मैंने सावधानी से अंधेरे में कदम रखा, मेरी आँखें मंद रोशनी के साथ तालमेल बिठा रही थीं। तहखाने को नक्काशी और मूर्तियों से सजाया गया था, उनके चेहरे शाश्वत पीड़ा से विकृत थे। अचानक एक टिमटिमाती रोशनी ने मेरा ध्यान खींचा। मैं उसकी ओर मुड़ा और मेरा दिल लगभग रुक गया।
वहाँ, मकबरे के कोने में, एक आकृति खड़ी थी। इसका रूप अलौकिक था, एक अलौकिक चमक में नहाया हुआ स्वरूप। भूतिया आकृति में शोकपूर्ण अभिव्यक्ति थी, उसकी आँखें खोखली और प्रेतवाधित थीं। यह एक पारदर्शी हाथ की ओर बढ़ा, मानो मुझे पास आने का इशारा कर रहा हो।
मेरे भीतर डर और जिज्ञासाएं लड़ती रहीं, लेकिन मेरे आकर्षण ने मेरे आतंक पर काबू पा लिया। मैं सावधानी से आगे बढ़ा, भूत की ओर ऐसे खींचा जैसे कोई पतंगा लौ की ओर। जैसे-जैसे मैं करीब गया, प्रेत का मुँह खुल गया, और एक ध्वनि उभरी - एक धीमी, शोकपूर्ण कराह जो निराशा की गहराइयों से गूँजती हुई प्रतीत हुई।
मैं उस भूतिया आकृति से अपनी नज़रें नहीं हटा पा रहा था, उसकी उपस्थिति ज़बरदस्त थी, उसकी पीड़ा स्पष्ट थी। ऐसा लग रहा था कि वह फंस गया है, अपनी पीड़ा से मुक्ति के लिए तरस रहा है। उस क्षण, मुझे एहसास हुआ कि ये भटकती आत्माएं द्वेषपूर्ण प्राणी नहीं थीं, बल्कि खोई हुई थीं, जो शांति की तलाश में थीं।
लेकिन जैसे ही मेरा हाथ आत्मा को छूने के लिए बढ़ा, मकबरे में अचानक हवा का झोंका आया, जिससे दीवारों पर लगी मोमबत्तियाँ बुझ गईं। अँधेरा मुझ पर छा गया, और भूत गायब हो गया, केवल अपनी शोकपूर्ण चीख की गूँज छोड़कर।
मैं लड़खड़ाकर पीछे की ओर गिर गया, मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा, मेरी सांसें उखड़ गईं। कब्रिस्तान में एक बार फिर भयानक सन्नाटा छा गया। तब मुझे पता चला कि मैंने कुछ असाधारण, जीवन के दायरे से परे कुछ देखा है।
जैसे ही मैं कब्रिस्तान से बाहर निकला, मैं वहां भटकती आत्माओं के बारे में आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सका। क्या वे अनन्त पीड़ा के लिए अभिशप्त थे, या क्या उन्हें किसी दिन वह शांति मिल सकी जिसकी वे इतनी बेसब्री से तलाश कर रहे थे? ये प्रश्न मुझे परेशान कर रहे थे, एक भूतिया उपस्थिति की तरह, जो हमेशा के लिए मेरी स्मृति में अंकित हो गए।
और इसलिए, मैंने कब्रिस्तान छोड़ दिया, मेरे साथ भटकती आत्माओं का भार लेकर, उनकी कहानियाँ हमेशा के लिए मेरे दिमाग में अंकित हो गईं, अलौकिक की स्थायी शक्ति और हमारे अस्तित्व की नाजुक प्रकृति का एक प्रमाण।
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